कच्चा खाना | भारतीय परंपरा के अनुसार कच्चा खाना

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भारतीय परंपरा के अनुसार कच्चा खाना क्या है?

प्रिय पाठकों ,

अक्सर लोग मुझसे प्रश्न करते हैं कि भारत में कच्चा खाना किसे कहते हैं. पश्चिमी देशों में कच्चा खाना (raw food या uncooked food) उसे कहते हैं जो पकाया न गया हो. किन्तु भारतीय भोजन में कच्चा खाना क्या है? दोनों में जमीन आसमान का अंतर है. चलिए विस्तार से समझते हैं इस पारंपरिक भारतीय खाने को और इसके पीछे की स्वस्थ परम्परा को और कुछ मुख्य तथ्य कच्चे खाने के बारे में-

  1. वो खाना जिसे पहले उबाला जाता है और उसमें बाद में तड़का लगता है उसे कच्चा खाना कहते हैं. या फिर वो खाना जिसमे घी तेल न हो उसे भी कच्चा खाना कहा जाता है. दाल, चावल और रोटी खासतौर पर कच्चे खाने के हिस्से हैं.
  2. ८०-९० के दशक में भारत में ज्यादातर घरों में सुबह के खाने में ही यह कच्चा खाना बनता था. खिचड़ी कच्चे खाने का हिस्सा है क्योकि खिचड़ी में दाल चावल को पहले उबाला जाता है और तड़का बाद में लगता है. जबकि पुलाव पक्के खाने का हिस्सा है क्योंकि इसमें घी/तेल पहले डाला जाता है.
कच्चा खाना
कच्चे खाने का उदाहरण - दाल चावल रोटी सब्जी
  1. रोटी कच्चा खाना है जबकि परांठा पक्का खाना है. पूड़ी, कचौड़ी आदि सभी पक्के खाने का हिस्सा हैं. लेकिन उड़द की दाल जब पिस गयी और कचौड़ी बनी तो दाल की कचौड़ी हो गयी पक्के खाने का हिस्सा. नीचे लगी फोटो पक्के खाने का उदाहरण है जो आमतौर पर पूजा पाठ- शादी ब्याह या फिर शाम को भोज के लिए बनाई जाती है.
  2. pooja ka khana

मैं संयुक्त परिवार में जन्मी और पली बढ़ी. हमारे घर मे हमारी दो दादी रहती थीं एक मेरे पापा की माँ और एक चाची यानि हमारी चाची दद्दा. हमारे घर में दो तरह के खाने बनते थे. एक था कच्चा खाना जो आमतौर पर रोजाना में सुबह बनता था और दूसरा पक्का खाना जो शाम को बनता था. कच्चा खाना हमारी दोनों दादी बनाती थीं और उस वक्त किसी को भी चौके (जिसे हम अब रसोई कहते हैं) में जाने की इजाजत नही थी. हमारी दादी लोग नहा धोकर सूती साड़ी में चौके में काम करती थीं. उनके अलावा किचन में और किसी को भी घुसने की इजाजत नही होती थी. सभी लोग चौके में नंगे पाँव ही जाते थे और जाड़े के दिनों में केवल लकड़ी की खड़ाऊ जो ख़ास तौर पर रसोई के इस्तेमाल के लिए आती थीं का प्रयोग किया जा सकता था. (यह खड़ाऊ वैसी ही होती थीं जैसी हम दूरदर्शन में रामायण में देखते थे. राम जी की खड़ाऊ को गद्दी पर रखकर ही भरत जी ने 14 वर्ष राज-पाठ संभाला था.) यहाँ गौरतलब यह भी है कि इस बीच अगर कभी हमारी दादी को खाना बनाते बनाते बाथरूम जाने की जरूरत पड़ जाती थी तो वह दुबारा से नहाती थीं, फिर धुली सूती साड़ी बदलती थीं और वापस चौके में आती थीं

kachcha khana

जब एक बार हमारी दादी चौके में आ गयीं तो उसके बाद वो सारा खाना बनाकर सबको खिला कर और उसके बाद खुद खाकर ही चौके से बाहर निकलती थीं. यहाँ यह भी गौर करें कि हमारा लगभग 20 लोगों का परिवार था और 3-4 मेहमान तो बने ही रहते थे. मुझे आज भी याद है खाना बनाना शुरू करने से पहले वो सब सामान प्लेट में निकाल लेती थीं, इसका मतलब यह हैं कि पूरा मसालदान आदि चूल्हे के पास नहीं जाता था बल्कि नमक हल्दी आदि सब पहले एक प्लेट में निकाले जाते थे.

खाना बनाने की सभी सामग्री जरूरत के हिसाब से निकाली जाती थी जिससे कि यह बचे नहीं. यह सब खाली सुबह के खाने के वक्त ही होता था जब कच्चा खाना बनना होता था. यह नियम शाम के खाने (पक्के खाने) के लिए नही था.

अब हम आपको यह भी बता दें कि कच्चे खाने के साथ इतना भेद भाव क्यों है? यह सब किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचने के लिए है. जब एक बार नहा कर केवल एक ही इंसान चौके के अन्दर गया तो बाहर से किसी भी बैक्टीरिया के चौके के अन्दर जाने की गुंजाईश कम हो जाती है. किसी को भी चौके से अन्दर बाहर करने की इजाजत नहीं है. कपड़े भी सूती पहने हैं. चौके की दिशा ऐसी होती थी कि उसमें सूरज की किरणें आयें और संक्रमण से बचाने के लिए ही कच्चा खाना हमेशा दोपहर का खाना होता है. परम्परानुसार कच्चा खाना शाम को नहीं बनाया जाता था.

इस परम्परा में वैज्ञानिक तथ्य भी हैं. कच्चा खाना प्रोटीन, कार्बोहायड्रेट, वसा, रेशे आदि का ज्यादा अच्छा संगम है. हर भारतीय परम्परा के पीछे कारण हैं. कच्चे खाने में दाल चावल बनते हैं. दाल में प्रोटीन होता है जो कि सेहत के लिए अनिवार्य है. प्रोटीन को हजम करने में समय लगता है इसलिये इसे दोपहर के खाने में खाया जाता था. जबकि शाम को सब्जी खाने का चलन था. सब्जी में विटामिन्स और खनिज होते हैं और यह फटाफट पच जाती है.

उत्तर भारत में दिन में कच्चा खाना खाने की परंपरा अब भी है. जायदातर बिजनेस क्लास घरों में दाल चावल दिन में ही बनते हैं. यहाँ तक कि स्कूल कॉलेज की मेस भी दिन में कच्चा खाना परोसती हैं. नीचे लगी थाली आई आई टी कानपुर की है जिसमें कढी चावल रोटी आदि परोसा गया है.

food at IIT

आशा है आपको यह लेख पसंद आए और आपको अपने देश की परंपरा और इसके पीछे छिपे वैज्ञानिक तथ्यों को समझने में मदद मिले.

मैंने कुछ समय पहले कोरा पर भी इस उत्तर को लिखा था. आप कोरा हिन्दी पर भी इस लेख और इससे सम्बन्धित पाठकों की प्रतिक्रिया पढ़ सकते हैं.

शुभकामनाओं के साथ,
शुचि